कुरुक्षेत्र जिले के बारे में

कुरुक्षेत्र


धर्मनगरी कुरुक्षेत्र
इतिहास:- कुरुक्षेत्र महाभारत युद्ध एवं श्रीमद्भगवद्गीता के जन्म स्थल के रूप में विशेष रुप से विख्यात है। इतिहास इस नगरी की गणना उन नगरों में की जाती है जिन्हे प्राचीन भारत में राजधानी होने का गौरव प्राप्त था। यह श्रीकंठ जनपद की राजधानी थी। शक्तिशाली वर्धन वंश का उदय यही हुआ था। जिसमें दो प्रतापी शासकों, प्रभाकर वर्धन और हर्षवर्धन के इस समय यह नगर गौरव के उच्चतम शिखर को स्पर्श कर रहा था, लेकिन हर्षवर्धन को तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के कारण अपनी राजधानी कान्यकुब्ज अर्थार्थ कन्नौज बनानी पड़ी थी। स्थाणीशस्वर नगर का गौरवपूर्ण इतिहास हर्षचरित्र चीनी यात्री ह्वेनसांग के वृतांत और मुस्लिम इतिहासकारों के विवरण तथा ग्रंथों से हमें ज्ञात होता है।
उपमंडल – थानेसर, पेहोवा, शाहबाद
तहसील – थानेसर, पेहोवा व शाहबाद
उप-तहसील – लाडवा, इस्माइलाबाद, बबैन
खंड – लाडवा, पेहोवा, शाहबाद, थानेसर, बबैन व इस्माइलाबाद

महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग कॉलेज
Øगीता इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी, गांव-कनिपला
स्थापना वर्ष 2007
Øकुरुक्षेत्र इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी, गांव-भोरसैंदा
स्थापना वर्ष 2007
Øश्री कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी,
स्थापना वर्ष 1997
Øटेक्नोलॉजी एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट,
स्थापना वर्ष 2007
Øमॉडर्न इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, गांव-मोहरी
स्थापना वर्ष 2007
Øकुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
स्थापना वर्ष 1956
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय – कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय हरियाणा की सबसे पहली यूनिवर्सिटी मानी जाती है I कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय की स्थापना राज्य विधानसभा के एक्ट 12 एफ 1956 के तहत हुई थी I 11 जनवरी, 1956 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने इस विश्वविद्यालय की निव रखी थी। प्रारंभ में इसे यूनिटरी टीचिंग और रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला था किंतु अपने अस्तित्व के 5 वर्ष के बाद यह बहुसंकाय विश्वविद्यालय के रुप में स्थापित हुई।
राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान (एन.आई.टी) – राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान कुरुक्षेत्र, भारतवर्ष के 20 संस्थानों में से एक है। पहले यह एक रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज था। 26 जून 2002 को भारत सरकार द्वारा ईस संस्थान को विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया।
महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल
भोरसैदा – यह जगह कुरुक्षेत्र से लगभग 13 किलोमीटर दूर लगभग 8 एकड़ क्षेत्र में बनी मगरमच्छों की वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है।
ज्योतिसर सरोवर – ज्योतिसर सरोवर कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से 8 किलोमीटर दूर पेहोआ मार्ग पर सरस्वती नदी के लुप्तप्राय पर्वाह पथ के किनारे स्थित है । महाभारत युद्ध के समय रणक्षेत्र में ईस स्थान पर श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। यहां श्री कृष्ण, अर्जुन तथा शंकराचार्य के मंदिर का निर्माण भी करवाया गया है।
ब्रह्मसरोवर – यह तीर्थ कुरुक्षेत्र में थानेसर सिटी स्टेशन के समीप स्थित है । इसे कुरुक्षेत्र सरोवर भी कहते हैं। माना जाता है कि इस सरोवर को राजा कुरु ने खुदवाया था।
गीता भवन – यह स्थान ब्रह्मसरोवर के उत्तरी तट से कुछ दूरी पर विद्यमान है। मध्य प्रदेश के महाराजा ने सन 1921 ईस्वी में इसकी स्थापना कुरुक्षेत्र पुस्तकालय के नाम से की थी।
श्री शनि धाम – यह धाम कुरुक्षेत्र-दिल्ली मार्ग पर कुरुक्षेत्र के उमरी चौक पर बना है। इस धाम में शनि देव की प्रतिमा प्रथम तल पर स्थापित की गई है। इस प्रतिमा के साथ ही नौ ग्रहों की प्रतिमाएँ भी स्थापित की गई हैं।
कालेश्वर तीर्थ – जनश्रुति के अनुसार रामायण काल में यहां रुद्र की प्रतिष्ठा की गई थी। पूराणोक्त 11 रुद्रों में से यह एक रूदर् है।
बिरला मंदिर – यह मंदिर कुरुक्षेत्र-पिहोवा मार्ग पर ब्रह्म सरोवर के समीप स्थित है। इस मंदिर का निर्माण भी जुगल किशोर बिरला ने वर्ष 1955 में करवाया था और इसका नाम भगवद गीता मंदिर रखा दिया गया।
स्थानेश्वर महादेव मंदिर – थानेश्वर नगर के उत्तर में कुछ फर्लांग की दूरी पर सम्राट हर्षवर्धन के पूर्वज राजा पुष्यभूति द्वारा निर्मित स्थानेश्वर महादेव मंदिर सुविख्यात है। यही वह स्थान है जहां पांडवों ने भगवान शिव से प्रार्थना की थी और उनसे महाभारत के युद्ध में विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया था।
श्री कृष्ण संग्रहालय – श्री कृष्ण संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1991 में कुरुक्षेत्र में ही की गई थी।
सर्वेश्वर महादेव मंदिर – कुरुक्षेत्र के प्रमुख मंदिरों में से यह एक प्रमुख मंदिर है। सर्वेश्वर महादेव का मंदिर ब्रह्मा सरोवर पर उत्तर की ओर एक टापू पर स्थित है। इस मंदिर के चारों ओर जल भरा रहता है तथा यहां पहुंचने का साधन एक छोटा सा पुल है।
मार्कंडेश्वर देवी मंदिर, गुमटी – 27 मार्च 1937 को पाकिस्तान के जिला शेखुपुरा के गांव भिखी में करमचंद व सुहांगवती के घर बाजीका प्रकाशवति ने जन्म लिया। उसका मन बचपन से ही भगवत भक्ति में रंग गया। भारत विभाजन के पश्चात प्रकाशवती के पिता करमचंद अपने पूरे परिवार सहित पाकिस्तान से आकर हरियाणा में बस गए। कुरुक्षेत्र के गांव गुमटी में रहते हुए वर्ष 1953 से प्रकाशवती ने मार्कंडेश्वर देवी मंदिर की स्थापना की।
शेखचिल्ली का मकबरा – थानेश्वर नगर के उत्तर पश्चिम कोण पर संगमरमर से बना हुआ यह एक बहुत खूबसूरत मकबरा है। यह मकबरा सूफी संत शेख चिल्ली का है, जो मुगल सम्राट शाहजहां के शासनकाल में ईरान से चलकर भारत में हजरत क़ुतुब अलाउद्दीन से मिलने थानेसर आए थे। उन्होंने यहां अलाउद्दीन से भेंट की I दुर्भाग्य से शेखचिल्ली की मृत्यु थानेसर में ही हो गई और उन्हें यहां दफना दिया गया। इसी कारण शेखचिल्ली के मकबरे को हरियाणा का ताजमहल भी कहा जाता है।
बाबा काली कमली का डेरा – यह डेरा श्री स्वामी विशुद्धानंद जी महाराज द्वारा स्थापित किया गया है। यहां पर भगवान शंकर, श्री कृष्ण तथा अर्जुन की प्रतिमाएं विराजमान है।
बाणगंगा – यह कुरूक्षेत्र के थानेश्वर ज्योति शर्मा मार्ग पर नरकासारी गांव के निकट से निकलती है। महाभारत में अर्जुन ने यहां पर बाण मारकर गंगा निकाली थी तथा जलधारा शर-शस्य पर लेटे भिषम पितामह के मुंह में पहुंची थी।
प्राची तीर्थ – कहा जाता है कि इस स्थान पर तीन रात्रि तक रहकर व्रत करने से शरीर के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं।
अपाया – यह अति प्राचीन तीर्थ स्थल अपाया नदी के तट पर स्थित है। इस नदी में स्नान कर और माहेश्वर की पूजा करने से मनुष्य परमगति को प्राप्त करता है।
देवीकूप मंदिर – यह मंदिर भद्रकाली या सती को समर्पित है तथा भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है।
ज्योतिसार – यह एक पवित्र पर्यटक स्थल है जो थानेश्वर से 8 किलोमीटर दूर पेहोवा मार्ग पर सरस्वती नदी के किनारे स्थित है।
लाडवा – यह नगर सिक्खों के घरानों का माना जाता है। सिक्खों के प्रथम युद्ध के पश्चात ही अंग्रेजों ने इसे अपने अधिकार में ले लिया था। कुरुक्षेत्र जिले की यह सबसे अधिक प्राचीन नगरपालिका है। जिसकी स्थापना 1867 में की गई थी।
  • यहां पर इंदिरा गांधी नेशनल कॉलेज भी स्थापित है। इसकी स्थापना 1975 में की गई थी।
शाहबाद – यह नगर जी टी रोड पर कुरुक्षेत्र से 23 किलोमीटर की दूरी पर मारकंडा नदी के किनारे बसा हुआ है। यह कस्बा बादशाह अकबर के शासनकाल में इसी नाम के परगने का मुख्यालय था। इसी स्थान पर महर्षि मार्कंडेश्वर की तपस्या स्थली भी है, जो बाद में शाहबाद मारकंडा के रूप में प्रसिद्ध हुई।
Highway – नेशनल हाईवे 01 दिल्ली से अंबाला कि ओर कुरुक्षेत्र
होते हुए गुजरता है
नदींयाँ – सरस्वती नदी और मारकंडा नदी यहां कि पर्मुख नदियां हैं ।