महेंद्रगढ़ जिले के बारे में

महेंद्रगढ़


महेंद्रगढ़ का पुराना नाम कानोड है
स्थापना – 1 नवंबर 1966
  • मुख्यालय – नारनौल।
  • उप-मंडल – महेंद्रगढ़, कनीना व नारनौल।
  • तहसील – महेंद्रगढ़, नारनौल, अटेली, कनीना, नांगल चौधरी।
  • उप-तहसील – सतनाली
  • खंड – अटेली, नांगल चौधरी, कनीना, महेंद्रगढ़, नारनौल, निजामपुर, सतनाली।
प्रमुख खनिज
स्लेट, लौह-अयस्क, एस्बेस्टस, संगमरमर और चूना।

इतिहास
जिला महेंद्रगढ़ के केंद्र स्थान नारनौल की गणना प्राचीन तथा इतिहास प्रसिद्ध नगर के रुप में की जाती है। नारनौल महर्षि च्यवन की तपस्थली मानी जाती है। इसे नंदीग्राम के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थान को नाहरनौल अथवा सिहो का डहर नाम से भी पुकारा जाता था। इसी कारण इस नगर का नाम नारनौल पड़ा था।
कनौडिया ब्राह्मणों द्वारा आबाद किए जाने की वजह से महेंद्रगढ़ पहले काह्ननौड के नाम से भी जाना जाता था। माना जाता है कि बाबर के समय इसे मलिक महदूद खान ने बसाया था। 17वीं शताब्दी में मराठा राजा तात्या टोपे ने यहां एक किले का निर्माण करवाया था। सन 1861 में पटियाला रियासत के शासक महाराजा नरेंद्र सिंह ने अपने पुत्र महेंद्र सिंह के सम्मान में इस किले का नाम महेंद्रगढ़ रख दिया था। महेंद्रगढ़ एक ऐसा जिला है जिसका मुख्यालय जिले के नाम के अनुरुप न होकर नारनौल मे स्थित है।

  • माधोगढ़ का किला
महेंद्रगढ़ से 15 किलोमीटर दूर सतनाली सड़क मार्ग पर अरावली पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों के बीच सबसे ऊंची चोटी पर माधोगढ़ का ऐतिहासिक किला स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इसका निर्माण राजस्थान के सवाई माधोपुर के शासक माधव सिंह ने करवाया था।

  • राय मुकुंद दास का छत्ता
ईस ऐतिहासिक स्मारक का निर्माण शाहजहां के शासनकाल में नारनौल के दीवान राय मुकुंददास ने करवाया था। यह स्मारक नारनौल के मुगलकालीन ऐतिहासिक स्मारकों में सबसे बड़ा है। अकबर के शासनकाल में यहां बीरबल का आना-जाना रहता था, इसीलिए इस स्मारक को बीरबल का छत्ता के नाम से भी जाना जाता है।

  • इब्राहिम खान का मकबरा
नारनौल शहर के दक्षिण में घनी आबादी के बीच स्थित इब्राहिम खान का मकबरा एक विशाल गुंबद के आकार का है। इसका निर्माण इतिहास प्रसिद्ध सम्राट शेरशाह सूरी ने अपने दादा इब्राहिम खान की यादगार में करवाया था।

  • मिर्जा अलीजान की बावड़ी
मिर्जा अलीजान की बावड़ी नारनौल शहर के पश्चिम में आबादी से बाहर स्थित है। इस ऐतिहासिक बावड़ी का निर्माण मिर्जा अली खान ने करवाया था।

  • नारनौल की बावड़ी
किसी समय नारनौल में 14 बावड़ीयाँ मौजूद थी, लेकिन इन बावडियों की संख्या लगातार घटती ही जा रही है। नारनौल की मुख्य बावड़ी तख्तवाली बावड़ी है, जो सौंदर्य से परिपूर्ण है। यह बावड़ी छलक नदी के किनारे स्थित है। अपने ऊपर शानदार तख्त शीश धारण किए हुए यह बावड़ी मिर्जा अली जान ने बनवाई थी।

  • शाह विलायत का मकबरा
शाह विलायत का मकबरा इब्राहिम खान के मकबरे के एक और स्थित है। यह मकबरा आकार में बड़ा है और इसे तुगलक से लेकर ब्रिटिश काल तक की परंपरागत वास्तुकला से सजाया गया है। फिरोजशाह तुगलक के काल में यह मकबरा और इसके निकट के स्थल बनाए गए थे।

  • चामुंडा देवी का मंदिर
नारनौल के मध्य भाग में स्थापित यह प्राचीन मंदिर शहर के मुख्य दर्शनीय स्थलों में से एक है, साथ ही यह सभी धर्मों एवम् संप्रदायों की एकता का भी प्रतीक है।

  • हमजा पीर दरगाह
नारनौल से करीब 10 किलोमीटर दूर ग्राम धरसूं में स्थित संत हमजा पीर की दरगाह भी काफी प्रसिद्ध है। हमजा पीर का पूरा नाम हजरतसाह कलमुद्दीन हमजा पीर हुसैन था।

  • शिव मंदिर बाघोत
महेंद्रगढ से लगभग 40 किलोमीटर दूर कनीना-दादरी मार्ग पर स्थित ग्राम भागोत का प्राचीन शिव मंदिर दर्शनीय स्थल है। इस प्रसिद्ध शिव मंदिर का नाम इक्ष्वाकु वंश के चक्रवर्ती राजा दिलीप के नाम से जुड़ा हुआ है। राजा दिलीप ने ही इस शिव मंदिर का निर्माण करवाया था और इसे बागेश्वर का नाम दिया गया था। कालांतर में बागेश्वर से यह भागोत हो गया।

  • प्रमुख स्थल
  • बाबा केसरिया धाम, मांडोला
  • बाबा खिमज धाम, सेहलंग
  • बाबा भोलेगिरी आश्रम, खेड़ी तलवाड़ा

  • प्रमुख फसलें
सरसों उत्पादन में महेंद्रगढ़ जिला पूरे प्रदेश में शिखर पर है। यहां की महत्वपूर्ण खरीफ फसल बाजरा है तथा रबी मौसम की फसलों में गेहूं, चना तथा सरसों महत्वपूर्ण फैसले हैं।

  • खनिज पदार्थ
चूने का पत्थर, लोहा, ऐस्बेस्टस, स्लेट का पत्थर, मार्बल का पत्थर आदि यहां के प्रमुख खनिज पदार्थ है।


  • नारनौल का इतिहास
नारनौल को शेरशाह की जन्मभूमि के नाम से भी संबोधित किया जाता है। अकबर ने ही यहां पर सिक्के डालने की टेक्सटाइल की स्थापना की थी। बीरबल के छते नाम से मशहूर राय बालमुकुंद दास का छता  यहां के मुगलकालीन इतिहास की झलक देता है। इब्राहिम खान का मकबरा स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना पेश करता है। लाल पत्थरों से निर्मित यह भवन आज भी अपने भव्यता का दावा पेश करता है।
शाह कुली खां द्वारा निर्मित जल महल नारनौल को नैसर्गिक सौंदर्य प्रदान करता है और साहूकार गुंबज भी आज भी अपनी भव्यता व्यक्त कर रहा है। पांडवों की रमणस्थली एवं महर्षि च्वनन की कर्मस्थली ढोसी इसी नगर की आध्यात्मिक एवं प्राकृतिक पहचान हैं।

  • अटेली
नारनोल से लगभग 20 किलोमीटर दूर उत्तर पूर्व में स्थित रेवाड़ी नारनौल रेल मार्ग पर स्थित अटेली महेंद्रगढ़ जिले की प्रमुख मंडी है। यह स्थान अनाज की मंडी व स्लेट पत्थर की पहाडीयों के कारण काफी विख्यात है। स्लेट पत्थर की प्रचुर मात्रा के कारण यहां  स्लेट उद्योग काफी ज्यादा प्रसिद्ध है जो की देश-विदेश में स्लेट कि पुर्ती करता  है। कनीना, महेंद्रगढ़ से लगभग 15 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित कनीना एक ऐतिहासिक गांव है जिसे 13 वीं सदी में अजमेर क्षेत्र से आए कन्हैया लाल अहीर कान्हाराम उर्फ काना सिंह ने बताया था और उसी के गोत्र के नाम पर इस गांव का नाम कनीना पड़ गया। इस गांव के सरदार जोध सिंह लगभग 40 गांव के चौधरी हुआ करते थे।