भिवानी जिले के बारे में

 भिवानी

क्षेत्रफल – 4778 वर्ग किलोमीटर
स्थापना 22 दिसंबर 1972 प्रमुख नगर भिवानी बवानी खेड़ा तोशाम लोहारू सिवानी लिंग अनुपात 886 साक्षरता दर 75.21%
भिवानी का इतिहास –
भिवानी का पूर्व नाम भानीग्राम, भिआनी, भियानी, भिवाणी आदि होते थे लेकिन कालांतर में ये चेंज हो कर भिवानी बन गया।
भिवानी जिले का वर्णन हमें आईने अकबरी में भी मिलता है। हिसार जिले के गजेटियर में भिवानी को प्राचीन काल से व्यापार का सुप्रसिद्ध केंद्र बताया गया है।
बीकानेर रेलवे लाइन निकलने से पहले भिवानी शहर राजपूताने का मुख्य व्यापारिक केंद्र माना जाता था।
अमृतसर के पश्चात यह कपड़े की सबसे बड़ी मंडी था। भिवानी को धर्मार्थ न्यासों का शहर भी कहा जाता है। इन न्यासों द्वारा अनेक अस्पताल, महाविद्यालय और विद्यालय आज भी चलाए जा रहे हैं।
इस कस्बे को हरियाणा की काशी भी कहा जाता है। भिवानी रेल मार्ग से, दिल्ली, मथुरा, जयपुर, फिरोजपुर, चंडीगढ़, अमृतसर, हिसार आदि नगरों से जुड़ा हुआ है।
1714 तक भिवानी में पंचायती राज था और दिल्ली के बादशाहों के अधीन था तथा नाम मात्र का ही लगान दिया जाता था। दिल्ली तख्त के बादशाह के प्रतीनिधि सेठ सीताराम, भिवानी आए और उन्होंने बताया कि बादशाह ने एक लाख रूपय लगान के रूप में मंगवाए हैं इस पर दानवीर सेठ श्रीराम ने 75 हजार रूपय व भिवानी की जनता ने 25 हजार रूपय दिए तब जाकर भिवानी की रक्षा हो पाई।
अंग्रेजों द्वारा गौ हत्या पर प्रतिबंध – मेरठ में पहली बार अंग्रेजो के खिलाफ 1857 में क्रांति हुई थी। उस समय सेठ नंदराम ने हिसार और रोहतक के अंग्रेजों को अपने कटले में छिपाकर क्रांतिकारियों के द्वारा मौत के घाट उतारने से बचा लिया था।
तब अंग्रेजों ने खुश होकर नगर सेट लाल नंदराम की मांग के अनुसार किसी भी पशु और पक्षी का शिकार करना और गौहत्या पर सदा सदा के लिए प्रतिबंध लगा दिया था।
सन 1928 के बारदोली सत्याग्रह में भिवानी के बहुत से नौजवान जेल गए थे। इनमें प्रमुख रूप से पंडित नेकीराम शर्मा, पंडित उमादत्त शर्मा, पंडित राम कुमार और सेठ गोकलचंद आर्य प्रमुख थे।
भिवानी में 1893 में पहली बार नहर लाई गई थी।
सन 1933 में भिवानी में वाटर वर्कस स्थापित किया गया था।
गंदे पानी की निकासी की व्यवस्था सन 1935 में पक्की नालियों के द्वारा की गई थी।
यहां पर सन 1881 में रेल लाइन बिछाने का कार्य शुरू हुआ था। यह रेल लाइन रेवाड़ी से बठिंडा के बीच चलाई गई थी।
सन 1883 में यहां से रेल यात्रा प्रारंभ हो गई थी।
सन 1992 में उग्रसेन के प्रयासों से भिवानी सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक की स्थापना की गई थी।
सन 1948 में यहां बड़ा डाकघर भी खोला गया था।
सन 1948 में ही टेलीफोन ऑपरेटर की नियुक्ति की गई थी।
भिवानी की 2 प्राचीन मिलें टी.आई.टी और पंजाब क्लोथ मिल सारे देश में प्रसिद्ध है। नायलोन निवार तथा धागे के निर्माण में भी भिवानी उत्कृष्ट भूमिका निभाता है।
पंडित दीनदयाल शर्मा के द्वारा सन 1957 में श्री सनातन धर्म संस्कृत पाठशाला की स्थापना की गई थी।
पंडित सीताराम शास्त्री द्वारा सन 1968 में ब्रह्मचार्य आश्रम की स्थापना की गई थी।
किशन लाल ने नेत्र चिकित्सालय की स्थापना की थी जो बाद में संचालकों के द्वारा हरियाणा के चिकित्सा विभाग को समर्पित कर दिया गया था।
रायबहादुर ताराचंद घनश्याम ने सन 1910 में पशुओं के अस्पताल के लिए घंटाघर के पास एक बड़ा भूखंड पशुओं के अस्पताल के लिए समर्पित किया था।
सेठ छाजू राम ने अपनी सुपुत्री कमला देवी की पुंय स्मृति मे लेडी हेली हॉस्पिटल की स्थापना की थी। इसकी प्रथम मुख्य चिकित्सक हिंद केसरी लेडी डॉक्टर सपरे थी। इसके बाद मिस मैरीयम ने एक अस्पताल की स्थापना की। जिसका नाम फेरर हॉस्पिटल रखा गया।
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड – हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की स्थापना 31 जनवरी,1970 को चंडीगढ़ में हुई थी उसके बाद यह बोर्ड नवंबर सन 1980 में भिवानी में स्थानांतरित कर दिया गया था।इस बोर्ड के प्रथम अध्यक्ष बी.एस.आहूजा तथा प्रथम सचिव विश्वनाथ रहे थे।
लुहारू – लोहारू को पहले रियासत का दर्जा प्राप्त था। इस रियासत में 75 गांव थे। यहां का शासक मुगलिया खानदान का नवाब था। इस नगर को बसाने वाले राव नहरदास जयपुर घराने के रहने वाले थे। पहले इसका नाम लोहारूप रखा गया था। कालांतर में इसके नाम का अंतिम अक्षर प लुप्त हो गया और यह नाम लोहारू के रूप में विख्यात हुआ।
लोहारू का किला – लोहारू के दुर्ग का निर्माण जयपुर राजा के एक सामंत अर्जुन देव ने सन् 1570 ईस्वी में करवाया था।
तोशाम
बाबा मुंगीपा धाम – तोशाम की पहाड़ी पर बना बाबा मुंगीपा धाम बेहद दर्शनीय स्थल है। ईसके बारे मे यह मान्यता है कि बाबा गोपीनाथ अपनी बहन चंद्रावल, मामा भृथरी और गुरु गोरखनाथ के साथ तोशाम की पाहाडी पर आए थे। चंद्रावल मूंगे रंग के वस्त्र धारण करती थी इसलिए इस क्षेत्र के निवासी उन्हें मुंगी मां कहते थे। मुंगी मां के ब्रह्मलीन हो जाने के बाद उनका नाम समय बीतने के साथ-साथ मुंगीपा हो गया और उनकी मंडी यहां पर बना दी गई।
अष्ट कुंड एवं पंचतीर्थ – तोशाम की ऐतिहासिक पहाड़ी पर पानी के 8 कुंडों में एक पंचतीर्थ है। जिसे पांडव तीर्थ भी कहा जाता है। बताया जाता है कि जब पांडव अज्ञातवास में थे तो 13 दिन इसी स्थान पर रहे थे। यहां मुख्य पहाड़ी पर जगह-जगह कई कुंड बनाए गए थे, जो कि यहां रहने वाली भिक्षुओं और बाद में तपस्वियों को पीने के लिए पानी प्रदान करते थे।
रंगीशाह मस्जिद – रंगीशाह वाली मस्जिद वास्तुकला के हिसाब से एक दर्शनीय मस्जिद कही जाती है। ईस मस्जिद को छोटी मस्जिद, व्यापारियों वाली मस्जिद और नई मस्जिद के नाम से भी जाना जाता था। ईस मस्जिद में मसाईयों वाली मस्जिद के द्वार काष्ठकला के हिसाब से उत्कृष्ट कहे जा सकते हैं।
सिवानी
बादशाह अकबर के समय दिल्ली सुबे में 8 सरकारें थी। जिनमें हिसार-ए-फिरोजा एक सरकार थी। जिसके तहत 27 महल आते थे। जिसमें सिवानी एक मुख्य परगना था। यह गांव हिसार से 32 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। सिवानी को मंडी के नाम से भी जाना जाता है।
भिवानी के प्रसिद्ध व्यक्ति
बंसीलाल (पूर्व रक्षा मंत्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा)
सेठ किरोड़ीमल (समाजसेवी)
बनारसीदास गुप्त (पूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा)
रणबीर सिंह महेंद्रा (पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष)
भिवानी के महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल
शीतला माता मेला, धनाना – धनाना मे प्रति वर्ष चैत्र मास की सप्तमी को शीतला माता (मोटी माता) का मेला लगता है।
देवी मेला, देवसर – भिवानी नगर से 5 किलोमीटर दूर ग्राम देवसर में प्रतिवर्ष चेत्र तथा अश्विन में दो बार देवी का मेला लगता है।
गौरी शंकर मंदिर – भिवानी का गौरी शंकर मंदिर अपने रुप व वैभव के लिए काफी प्रसिद्ध है। गौरी शंकर मंदिर भिवानी शहर के बीचो-बीच स्थित है। जिसे किरोड़ीमल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। क्योकि इस मंदिर का निर्माण भिवानी के सेठ किरोड़ीमल ने ही करवाया था।
परमहंस मंदिर, तिगड़ाना – भिवानी जिले के गांव तिगड़ाना में स्थित बाबा परमहंस के तीन मंदिर स्थित है। बाबा परमहंस ने गांव तिगड़ाना में डेरा डाला था
भूतों का मंदिर – यह मंदिर सन 1919 में भूत वंश के सेठों द्वारा मल्लू वाले तलाब पर स्थापित किया गया था।
पंचमुखी हनुमान मंदिर – पतराम दरवाजे के बाहर बैरागी साधुओं के द्वारा यह मंदिर स्थापित किया गया था।
बैया पर्यटक केंद्र – भिवानी नगर में पर्यटन विभाग के द्वारा लोक निर्माण विश्रामगृह के साथ बैया नाम से एक होटल तथा रेस्टोरेंट यहां पर स्थापित किया गया है।
तोशाम की बारादरी – भिवानी जिले में तोशाम नामक पहाड़ी पर बरादरी स्थित है। इस बरादरी के निर्माण में चुने और छोटी ईंटो का प्रयोग किया गया है। इसमें 12 द्वारों का निर्माण ईस प्रकार से किया गया है कि केंद्रीय कक्ष में बैठा हुआ व्यक्ति चारों तरफ आसानी से देख सकता है।
लोहाण – लोहाण को पहले रियासत का दर्जा प्राप्त था। इसमें 75 गांव लगते थे। यह कस्बा पहले बावन के नाम से प्रसिद्ध था।
रेड रोबिन – पर्यटक विभाग के द्वारा भिवानी जिले में लोक निर्माण विभाग के द्वारा रेड रोबिन नाम से एक होटल तथा रेस्टोरेंट भी स्थापित किया गया है।
रोहनात का कुआं – यह गांव हंसी के निकट स्थित है, किंतु भिवानी जिले में ही स्थित है। रोहनात गांव में पहले बूरा गोत्र के जाट रहते थे, जिन्होंने सन 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध जबरदस्त विद्रोह किया था।
यह गांव शहीद गांव के नाम से जाना जाता है। इस गांव पर अंग्रेजों द्वारा तोपें चलाई गई थी।
तब लगभग 20-21 औरतों ने अपने बच्चों सहित इस कुएं में छलांग लगा दी थी। रोहनात गांव का यह कुआं आज भी इस जुल्म की याद दिलाता है।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल
जाहरवीर गोगा पीर मंदिर, गुडाना कला
पीर मुबारक शाह दरगाह, भिवानी
लोहड पीर मजार
मंदिर सेठ तूहीराम हरनाम दास
श्री राम प्रभु मंदिर
श्री रंगनाथ मंदिर
आलमालों का मंदिर
भिवानी के प्रमुख उद्योग
बिडला टेक्सटाइल मिल्स
चुनार शूटिंग शर्टिंग लिमिटेड
हिंदुस्तान गम एवं केमिकल्स लिमिटेड
भिवानी जिले से प्रकाशित होने वाले कुछ महत्वपूर्ण पत्र एवं पत्रिकाएं
दैनिक चेतना
हिंदू की ललकार
होम पेज
इवनिंग मेल
शांति हरियाणा
हरियाणा की आवाज
पूर्वी पंजाब
राष्ट्र वैभव
एडवर्ड
पशुपति वज्र
अतुल्य हरियाणा
उपभोक्ता चेतना
युवक संसार
लणिहार
सच्चा धर्म